लेखनी कविता -क्यों इन तारों को उलझाते? -महादेवी वर्मा
क्यों इन तारों को उलझाते? -महादेवी वर्मा
क्यों इन तारों को उलझाते?
अनजाने ही प्राणों में क्यों,
आ आ कर फिर जाते?
पल में रागों को झंकृत कर,
फिर विराग का अस्फुट स्वर भर,
मेरी लघु जीवन वीणा पर,
क्या यह अस्फुट गाते?
लय में मेरा चिर करुणा-धन,
कम्पन में सपनों का स्पन्दन,
गीतों में भर चिर सुख, चिर दुख,
कण कण में बिखराते!
मेरे शैशव के मधु में घुल,
मेरे यौवन के मद में ढुल,
मेरे आँसू स्मित में हिल मिल,
मेरे क्यों न कहाते?